लेखनी कहानी -24-Nov-2022 (यादों के झरोखे से :-भाग 26)
बात उस समय की है, जब हमें बी.एड. कॉलेज के प्रथम वर्ष में इंटर्नशिप के लिए विद्यालय अलॉट किए गए थे। इंटर्नशिप के फॉर्म भरने में थोड़ी देरी होने के कारण मुझे विध्यालय काफी दूर मिला था। परंतु, जाना टी था ही। जब पहले दिन मैं विद्यालय पहुंची। प्रधानाचार्य महोदया ने मुझे दो बच्चे दिए। ये दो बच्चे जिनमे एक लड़का था और एक लड़की थी। लड़की का नाम था रोशनी और लड़के का।नाम था इमरान। लड़का पढ़ने में जितना पीछे था, लड़की उतनी ही आगे। थोड़ी देर के बाद प्रधानाचार्य महोदया ने हम सभी शिक्षिकाओं को एक एक।समोसा और एक कचोरी नाश्ते के लिए दी।
चूंकि मैं घर से नाश्ता करके आई थी, मैंने वह संभाल कर अपने पर्स रख ली। थोड़ी देर के बाद एक मैडम ने एक और लड़की लाकर मेरे पास बता डायर कहा इसको भी कुछ नहीं आता आप, इसे भी पढ़ना सिखाइए। माने उसे भी बैठा लिया। अब मेरे पास तीन बच्चे थे। वे सभी बच्चे तीसरी कक्षा के थे। उनको मैंने। सबसे पहले अ से ज्ञ तक अक्षर सिखाए। फिर धीरे धीरे उनको ए से जेड तक अल्फाबेट सिखाए। उसके पश्चात् उनको गिनती सिखाई।
मैंने उनको कह दिया कि जो बच्चा मुझे लंच से पहले सब कुछ बिना देखे लिख कर बताएगा उसको मैं कचोरी और समोसा दूंगी। तीनों से झट सबकुछ याद करके लिखकर दिखा दिया। मैंने वायदे के मुताबिक उनको लंच में कचोरी और समोसे के तीन हिस्से करके दे दिए। बच्चे खुश हो गए। उनको पढ़ ए में मजा आने लगा।
जब विद्यालय की छुट्टी हुई तो बच्चे मुझे बोले मेम आप रोज आना। हम आप ही से पढ़ेंगे। मैंने भी हां कह दिया। अतः उनसे यह कहकर विदा ली कि जो कुछ मैंने तुम्हें गृह कार्य हेतु दिया है, वो सब कार्य जरूर करके आना, मैं तुम्हें कुछ ना कुछ ज़रूर पुरस्कार दूंगी।
बच्चे खुश हो गए। अब वे रोज विद्यालय आते और मेरे आने की प्रतीक्षा करते। दूर से ही मुझे देख कर उछलने लगते। धीरे धीरे वे सभी बच्चे पढ़ाई में काफी होशियार हो गए। जब वे मुझे याद करके सुनाते मैं उनको एक तोफिर दे देती। उनका मनोबल बढ़ जाता। लड़के को पहले दिन मैंने प्रेम से अपने पास बुलाकर यह कहा था कि तुम नहाकर आओगे और रोज साफ कपड़े पहनकर आओ तो कोई तुम्हारा मज़ाक नहीं उड़ाएगा। उस दिन से वह रोज़ नहाकर साफ सुथरे कपड़े पहनकर आने लगा। कुछ दिन बाद प्रधानाकार्य महोदया ने मुझे पूरी तीसरी कक्षा से दी। वे सभी बच्चे मुझे पसंद करने लगे। उनमें आए सुधार से प्रध्नाचार्य महोदया बेहद प्रसन्न हुईं।
जाने से कुछ दिन पहले मेरी एक शिष्या रोशनी ने मुझे एक अंगूठी लाकर दी उसपर \\'एस\\' लेटर था। मैंने उससे माना किया पर उसने मुझे यह कहकर उसे दे दिया कि वह केवल 10 रुपए की है अतः मैं उसे रख लूं। उसका स्नेह देखकर मैंने वह अंगूठी रख ली। कुछ दिन बाद मुझे उज्जैन जाना पड़ा। जब विद्यालय गई तो रोशनी छुट्टी पर थी। वह मेरा आखिरी दिन था। रोशनी का लगाव मुझसे इतना बढ़ गया था, कि एक दो दिन मेरे अनुपस्थित होने पर वह यह कहकर विद्यालय नहीं आई कि स्वाती मेम तो अब आती नहीं तो मैं विद्यालय नहीं जाऊंगी, मुझे उनकी बहुत याद आती है। मैंने उसके मित्रों द्वारा उसे संदेश दिलवाया कि उसे कही वह रोज़ आए वरना स्वाती मेम नाराज़ हो जाएंगी और कल सबसे मिलने ज़रूर आएंगी। परंतु, उसके बाद से ही लॉकडाउन पीड़ गया। मैं विद्यालय गई तो लेकिन वहां मुझे कोई बच्चा नहीं मिला। अतः उन सबसे आख़िरी बार मिलने की तमन्ना दिल में ही रह गई। अतः उनके लिए को तोहफ़े पुरस्कार हेतु मैं लाई थी, वे भी मैं उन्हें दे नहीं पाई।
Gunjan Kamal
17-Dec-2022 09:22 PM
बहुत ही
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Swati Sharma
18-Dec-2022 12:10 AM
बहुत ही.......... क्या मेम???
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Sachin dev
14-Dec-2022 04:18 PM
Well done
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Swati Sharma
14-Dec-2022 09:14 PM
Thank you sir 🙏🏻
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Punam verma
12-Dec-2022 09:12 AM
Very nice
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Swati Sharma
12-Dec-2022 12:44 PM
Thank you ma'am
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